आज तमिल नाडु के तथाकथित किसानों के जंतर मंतर वाले प्रदर्शन की बात करते है, जिसमे वो नरमुंड लेकर कभी अपने को मोदी का मुखौटा लगाये व्यक्ति द्वारा कोड़े लगवाकर,कभी मूत्र पीने का दावा कर प्रदर्शन कर रहे है
- उनकी पहली मांग है की उनके कर्जे माफ़ किये जायें।
पर कर्जे माफ़ करना राज्य सरकार के हाथ में होता है, केन्द्र के नहीं, जैसे यूपी में योगी ने किसानों के छोटे कर्जे माफ़ किये है, उसी प्रकार तमिलनाडु सरकार ही वहां के किसानों के कर्ज माफ कर सकती है,
अब जब विषय राज्य सरकार का है, तो धरना प्रदर्शन की नौटंकी दिल्ली की केंद्र सरकार के विरुद्ध क्यों? और दोष मोदी को क्यों ?
- दूसरी मांग है कि केंद्र की और से 40,000 करोड़ का पैकेज दिया जाए
ध्यान देने की बात ये है कि जब पहली मांग के अनुसार सारे कर्जे माफ़ हो जाते हैं, तो ये इतना भारी भरकम ₹ 40,000 करोड़ का पैकेज क्यों चाहिए ? किस लिए चाहिए ?
किस आधार पे चाहिए ?
और वो भी तब जब मोदी सरकार पहले ही 4000 करोड़ का पैकेज दे चुकी है।
- तीसरी मांग है चावल का नयूनतम समर्थन मूल्य (MSP- minimum support price) बढ़ाया जाए।
अब आपको जानकारी उपलब्ध करवा दूं कि 2013-2014 में कांग्रेस के शासन में चावल का MSP ₹1310 प्रति कविंटल था जिसे मोदी सरकार ने बढाकर ₹1470 प्रति कविंटल कर दिया यानि सीधे 12.21% की बढ़ोतरी, ये महत्वपूर्ण कदम इसिलीये हैं क्योंकि देश की महँगाई दर इसकी एक चौथाई से भी कम है, और मोदी सरकार ने MSP केवल चावल पर नही अपितु कई और फसलों पर बढ़ाया है, किंतु इन “किसानों” को वो पता नहीं क्यो नही दिख रहा ?
अब बात करते हैं कुछ तस्वीरों की जो इन प्रदर्शनकारियों की सोशल मिडिया में आ रही हैं, जिसमे दिल्ली के एक बेहद महंगे दक्षिण भारतीय रेस्त्रां से भोजन, मिनरल वाटर की बोतलें, मिठाई व् कॉफी इनके लिए लायी जा रही है व् ये लोग आराम से वो भोजन ग्रहण कर रहे हैं, विषय ये है कि इन इतने गरीब किसानों के लिए ये इतना विलासिता पूर्ण भोजन कौन खरीद रहा है ?
इन्ही प्रदर्शनकारियों के साथ धरना नौटंकी में पारंगत आम आदमी पार्टी के बड़े नेता देखे जा चुके हैं, और कांग्रेस के शहजादे राहुल गांधी भी उनके बीच पाये गये हैं,
इन प्रदर्शनकारियों द्वारा दिखाए गए उन फोटो की सच्चाई भी निकल के आई है जिन्हें ये लोग तमिलनाडु में मरणासन्न पड़े किसान को असली नरमुंड के साथ पड़ा बता रहे थे,
जो की वास्तव में केवल एक फोटोशूट था, जो नोयडा के खेतों में प्लास्टिक के नरमुंडों के साथ इंडिया टुडे के फोटोग्राफर द्वारा किया गया था, जिससे की विषय अधिक सनसनीखेज बने, मिडिया अधिक महत्व दे, और लोगों में इनके प्रति सहानुभूति जगे, वहीँ एक व्यक्ति जो इन प्रदर्शनकारियों के बीच किसान बनकर घूम रहा था उसकी पहचान एक वामपंथी छुटभैय्ये नेता के रूप में हुई है ।
असल में ये घटनाएँ इस ओर इशारा कर रही हैं कि संभव है कि ये हट्टे कट्टे मोटी तोन्दों वाले लोग किसान हों ही न, बल्कि कोई NGO ब्रिगेड हो जो असहिष्णुता, अवार्डवापसी, चर्च अटैक जैसे एक और षड्यंत्र के अंतर्गत केंद्र की भाजपा सरकार व् नरेंद्र मोदी की छवि खराब करने का प्रयास कर रही हो।
इन प्रदर्शनकारियों द्वारा दिखाए गए उन फोटो की सच्चाई भी निकल के आई है जिन्हें ये लोग तमिलनाडु में मरणासन्न पड़े किसान को असली नरमुंड के साथ पड़ा बता रहे थे,
जो की वास्तव में केवल एक फोटोशूट था, जो नोयडा के खेतों में प्लास्टिक के नरमुंडों के साथ इंडिया टुडे के फोटोग्राफर द्वारा किया गया था, जिससे की विषय अधिक सनसनीखेज बने, मिडिया अधिक महत्व दे, और लोगों में इनके प्रति सहानुभूति जगे, वहीँ एक व्यक्ति जो इन प्रदर्शनकारियों के बीच किसान बनकर घूम रहा था उसकी पहचान एक वामपंथी छुटभैय्ये नेता के रूप में हुई है ।
असल में ये घटनाएँ इस ओर इशारा कर रही हैं कि संभव है कि ये हट्टे कट्टे मोटी तोन्दों वाले लोग किसान हों ही न, बल्कि कोई NGO ब्रिगेड हो जो असहिष्णुता, अवार्डवापसी, चर्च अटैक जैसे एक और षड्यंत्र के अंतर्गत केंद्र की भाजपा सरकार व् नरेंद्र मोदी की छवि खराब करने का प्रयास कर रही हो।
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