आज आरक्षण राजनैतिक दलों के लिए वोट पाने का एक अस्त्र बन चुका है, और हर राजनैतिक दल इस अवसरवादी व तुष्टिकरण कि राजनीती में निपुण है, आज कि राजनीती के मायने बदल चुके है, एक कालखंड ऐसा था जब राजनीती देश हित के लिए की जाती थी, परन्तु आज राजनीती सिर्फ अपने स्वार्थ सिद्ध करने का साधन मात्र है,
जब आरक्षण लागु किया गया था तो सिर्फ १० वर्षों के लिए किया गया था, परन्तु उसके बाद से कभी भी इसे हटाने कि बात नहीं कि गयी, यदि पिछले ६५ वर्षों में इस आरक्षण से किसी का भला नहीं हुआ तो अब ये समझने का समय आ गया है कि, ये तुष्टिकरण का प्रयोग विफल हो चुका है,
परन्तु हमारे नेतागण अपने वोट बैंक के लालच में एक वर्ग के लोगों के अधिकारों का दोहन कर उनके अधिकार दुसरे वर्ग के लोगों में बाँट रहे हैं, जो कि अन्याय है, लोकतंत्र कि परिभाषा ये है कि हर व्यक्ति को समान अधिकार होते हैं, परन्तु भारत के बारे में समझ नहीं आता कि ये कैसा विचित्र लोकतंत्र है जहाँ की सरकार खुद अपने नागरिकों के बीच भेदभावपूर्ण व्यवहार करती है,
मित्रों इससे पहले कि मैं आरक्षण के औचित्य कि बात करूं, आइये जरा पिछड़ेपन कि परिभाषा भी देख लें, मैं हमारे नेताओं के जितना ज्ञानी तो नहीं हूँ, ना ही किसी विदेशी युनिवेर्सिटी में पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, परन्तु मेरे विचार से पिछड़ा व्यक्ति वह है जिसके पास ज्ञान का अभाव है, हर वह व्यक्ति पिछड़ा है जिसके पास जीवन यापन करने के लिए आवश्यक साधनों का आभाव है, अब यदि इसके समाधान के बारे में विचार किया जाये, तो उत्तर यही निकल के आता है कि ये दोनों ही अवश्यकताएँ धन के जरिये ही पूरी की जा सकती है, अर्थात देश का हर वह व्यक्ति जो गरीब है, कुलीन है, वह पिछड़ा है,
अब इसके बाद कोई भी ज्ञानी या बुद्धिजीवी मुझे ये बताये कि पिछडेपन का किसी जाती से क्या सम्बन्ध है ? मैं जानना चाहता हूँ कि किस पुस्तक में लिखा है कि एक सामान्य वर्ग का व्यक्ति कुलीन नहीं हो सकता ? अरे भाई कुलीनता व निर्धनता जब किसी कि जाती व धर्म देखकर नहीं आती तो फिर आरक्षण जाती के आधार पर क्यों ? ये कहाँ का न्याय है ?
अब उदाहरण के जरिये हमारे देश कि विडम्बना देखिये,
सामान्य वर्ग के छात्र को अच्छे कालेज में प्रवेश के लिए जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है और ९०% अंक लाने पर भी उसका प्रवेश सुनिश्चित नहीं होता, वहीँ तथाकथित पिछड़े वर्ग के छात्र कि सीटें तो भरनी ही है, कई बार तो ऐसा भी देखने में आया है कि २०% अंक वाले तथाकथित पिछड़े छात्रों को भी प्रवेश दे दिया जाता है, वहीँ ७५% अंक लाने वाले सामान्य वर्ग के छात्र प्रवेश से वंचित रह जाते हैं,
एक सामान्य वर्ग का छात्र यदि बैंक में क्लेर्क बनने के लिए आवेदन करता है, तो आवेदन भरने के लिए ३५० रुपये देने पड़ते हैं, वहीँ यदी कोई तथाकथित पिछड़ी जाती का व्यक्ति वही आवेदन करता है तो मात्र ५० रुपये में आवेदन कर लेता है , अब यही सामान्य वर्ग का छात्र यदि परीक्षा में ८५% अंक ले आये तब भी ये सुनिश्चित नहीं होता कि उसे नौकरी मिल जायेगी, परन्तु यदि तथाकथित पिछड़े वर्ग का छात्र यदि उस परीक्षा में ४०%-५०% अंक ले आये तो उस छात्र को ८५% अंक लाने वाले पर तरजीह दे दी जाती है, क्या ये अन्याय नहीं है ?
इतने सब के बावजूद भी हमारे राजनेताओं को सामान्य वर्ग के लोगों का शोषण करके शांति नहीं मिली, तो अब ये राजनैतिक दल अपने स्वार्थ के लिए पदोन्नति में आरक्षण लाने जा रहे हैं, यानि कि अगर किसी तरह एक सामान्य वर्ग के व्यक्ति को नौकरी मिल भी गयी, तो भी वो अपनी काबिलियत के बल पर कहीं पदोन्नति लेकर आगे ना बढ़ जाये, इसलिए अब पदोन्नति में भी आरक्षण करने कि तय्यारी हों रही है,
इन राजनैतिक दलों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामान्य वर्ग के नागरिकों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, इन्हें तो बस अपने लिए वोट कमाने है, भले ही वो इस देश के करोड़ों नागरिकों के अधिकारों कि बलि चढाकर इन्हें प्राप्त हों,
मित्रों मैं आज तक यह समझने में असमर्थ हूँ कि पदोन्नति में आरक्षण का औचित्य क्या है? जब एक तथाकथित पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को नौकरी मिल गयी, तो अब वो कहाँ से पिछड़ा रहा? और यदि वो अब पिछड़ा नहीं है तो फिर आरक्षण किस बात का?
मित्रों इस आरक्षण के दुष्परिणाम ये होंगे कि काबिलियत की कोई कीमत नहीं रह जायेगी, तथाकथित पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति इसलिए काम नहीं करेगा कि वो तो कोटे से आया है, और उसे तो हर हाल में पदोन्नति मिलनी ही है, वहीँ सामान्य वर्ग का व्यक्ति काबिल होने के बावजूद कुंठा ग्रस्त हों जायेगा, क्योंकि वह जानता है कि वो बेहतर है ज्यादा काबिल है, उसके बावजूद उसे पदोन्नति नहीं मिलेगी, और इसलिए वह काम से पीछे हटेगा, इसका परिणाम ये होगा की अंततः इस देश का ही नुक्सान होगा, और इन दोनो वर्गों के बीच में वैमनस्य फैलेगा क्योंकि सामान्य वर्ग का अधिकार छीना जा रहा है, तो स्वाभाविक सी बात है कि इसके लिए वे नेताओं और दुसरे वर्ग के लोगों को ही उत्तरदायी ठहराएंगे
मित्रों नेताओं का ये प्रयास पिछडों को मुख्यधारा से जोड़ने का नहीं है, अपितु ये तो एक षड्यंत्र है जो हमारे समाज में द्वेष वह वैमनस्य फैला कर दो वर्गों के बीच कि खाई को और बढाकर, अपना वोट बैंक बढ़ाने का है, ये वही अंग्रेजों द्वारा अपनाई गयी नीति है “बांटो और राज करो”, और हमारी भोली भाली जनता इस षड्यंत्र को समझने में विफल है, और इसका परनाम इस पूरे राष्ट्र को भुगतना पड़ेगा
मित्रों खेद का विषय ये हैं कि भाजपा भी इस राष्ट्र विरोधी कदम का विरोध करती नहीं दिख रही है, और संभवतः आगामी लोकसभा चुनाव में इसका फायदा उठाने के लिए चुपचाप इस संविधान संशोधन का मौन सहमति से समर्थन करती दिख रही है,
आज इस देश के राजनैतिक मूल्य इतने गिर चुके हैं, कि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के हितों की बलि चढाकर ये राजनैतिक दल अपनी वोट बैंक कि रोटियां सेंकने का प्रयास कर रही है, परन्तु इन्हें न्यूटन का सिद्धांत नहीं भूलना चाहिए जो कहता है कि “every action has an equal and opposite reaction”,
जो वर्ग आज तक अपने अधिकारों के छिनने के बावजूद शांत बैठा है, अगर उसे और दबाया गया तो इसका परिणाम भयावह होगा, आखिर सहनशक्ति कि भी एक सीमा होती है, और जब वो सीमा पार हो जाती है, तो व्यक्ति अपने अंदर दबे क्रोध को प्रकट करने के लिए बाध्य हो जाता है,
राजनेताओं को ये नहीं भूलना चाहिए कि किसी एक वर्ग के अधिकार छीन कर दुसरे वर्ग को देना अन्याय कि श्रेणी में आता है और एक कहावत है, “when injustice becomes law rebellion becomes duty” अर्थार्थ “जब अन्याय ही कानून बन जाये तो विद्रोह करना मनुष्य का धर्म बन जाता है”
और यदि कोई आरक्षण कि राजनीती करने वाला कोई नेता इसे पढ़ रहा हो तो इतना जरूर समझ ले, कि इस देश का हर व्यक्ति अपना विरोध अनशन करके अहिंसक तरीके से और मोमबत्तियाँ जलाकर नहीं दर्ज कराता, इस देश के लोगों में कहीं ना कहीं एक सुभाष चन्द्र बोस, एक भगत सिंह, एक उद्दम सिंह, एक चंद्रशेखर आजाद, एक राजगुरु और एक मंगल पाण्डेय है
इसलिए अपने भले और देश के भले को ध्यान में रखते हुए नेतागण ऐसी नौबत ना आने दें कि देश के युवा वर्ग को कोई ऐसा मार्ग अपनाना पड़े जो की इन तथाकथित चुने हुए लोगों को बहोत भरी पड़ जाये