नैतिकता के साथ राजनितिक परिपक्वता
कितनी महत्वपूर्ण है इसका ज्वलंत उदाहरण अन्ना हजारे की आज की स्थिति व् उनका आज
का दिया हुआ वक्तव्य है,
मुझे भली प्रकार याद है की जब मैंने अन्ना द्वारा ममता बनर्जी का समर्थन करने पर एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था “अन्ना के अनुसार किसी व्यक्ति कीशुचिता के मानक क्या है?”
इसपर कई लोगों ने मेरी आलोचना की थी,
किन्तु आज स्वयं अन्ना ने ही यह सत्यापित
कर दिया की मैंने अनुचित प्रश्न नहीं उठाये थे
लोगों को स्वयं विचार करना चाहिए की किसी भी बात में कितना तत्व है, उसके पश्चात् ही उसका समर्थन या विरोध करना चाहिए, जैसे अन्ना कहते हैं पार्टी को न देखें चरित्रशील लोगों को वोट दें, किन्तु क्या अन्ना अनभिग्य है की हर विधायक व् सांसद अपने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की बात मानने को बाध्य होता है ?
अतः यदि व्यक्ति ने किसी उम्मीदवार को अच्छा समझ कर भले ही वोट कर दिया, किन्तु उस उम्मीदवार की पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही यदि पक्षपाती अथवा आर्थिक या नैतिक रूप से भ्रष्ट है तो वह उम्मीदवार तो वही करेगा न जो नेतृत्व की आज्ञा होगी, वो उम्मीदवार संसद या विधानसभा में किसी बिल का समर्थन अथवा विरोध आपनी पार्टी नेतृत्व की आज्ञा के अनुसार ही तो करेगा, तो फिर क्या इस प्रकार बिना राजनितिक पार्टी पर ध्यान दिए केवल उम्मीदवार को देखकर वोट देने का सुझाव अनुचित नहीं है ?
जनता के पास कई साधन उपलब्ध हैं हर राजनितिक दल के विषय में जानकारी एकत्र करने के, उन्हें स्वयं जांच लेना चाहिए की उनकी आशा के अनुरूप कौन सा राजनितिक दल खरा है, उसके पश्चात ही वोट देना चाहिए, न की किसी व्यक्ति के कहे अनुसार !
No comments:
Post a Comment