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हवाला वही है "प्रदूषण", ये एक सोची समझी रणनीति है जिसमे लेफ्ट लिब्रल सेक्युलर गैंग कोर्ट में PIL से शुरुआत करता है, और समाज में विभिन्न पदों व् स्थानों में बैठे उनके सहयोगी उसके पक्ष में एक वातावरण बनाना आरम्भ कर देते हैं, बुद्धिजीवी कहलाये जाने वाले बड़े-बड़े लेख लिखते हैं, मिडिया की चर्चाओं में 4:1 के अनुपात का पैनल बैठाकर दर्शकों को भृमित किया जाता है, सोशल मीडिया पे विरोध करने वालों को रूढ़िवादी, संघी, घोषित करना आरम्भ हो जाता है, और अंत में न्यायालय में बैठे माननीय जज साहब अपना निर्णय सुना देते हैं, और सहिष्णु हिन्दू समाज बिना प्रश्न तर्क व् विरोध के निर्णय स्वीकार कर लेता हैं,
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दिवाली पर पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध की बात भी आयी है किन्तु ईद, न्यू ईयर, वैवाहिक कार्यक्रमों, IPL, क्रिकेट के अलावा अन्य खेल आयोजनों में पटाखों की बिक्री व् प्रयोग पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है, न ही कोर्ट को वह प्रदूषण दिखाई देता है,
दही हांडी की ऊंचाई सुरक्षा की दुहाई देकर कोर्ट सुनिश्चित करता हैं, किन्तु मुहर्रम पर 2-2 वर्ष के बच्चों के माथे पर चीरा लगाकर खून निकालते मुस्लिम कोर्ट को नहीं दिखते
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होली जलाने पर पेड़ों की कटाई दिख जाती है, किन्तु क्रिसमस पर करोड़ों हरे पेड़ों की कटाई नहीं दिखती, होली खेलने पर जल की बर्बादी होती है किन्तु करोड़ों लीटर जल बकरीद पर काटे गए करोड़ों जानवरों के मांस को धोने में बर्बाद नहीं होता,
ये है हमारा प्रगतिशील देश और ये है यहाँ के नियम व् न्याय व्यवस्था, और जिस प्रकार से घटनाएं घटित हो रही है, मुझे तथागत रॉय की बात सच होती दिख रही है, और हिन्दू वो सहिष्णु समाज है कि अंतिम संस्कार पर प्रतिबंध भी चुपचाप स्वीकार कर लेगा,
मुझे ऐसा इसलिए भी लगता है क्योंकि 1947 में धर्म के आधार पर बंटवारा होने के बाद जब हिन्दू कोड बिल आया उसमे निर्णय हुआ की हिन्दू एक ही पत्नी रखेगा, डिवोर्स में महिला को सम्पत्ति में अधिकार व् गुजारा भत्ता देय होगा, हिंदुओं के विवाह करने की आयु निश्चित कर दी गयी, किन्तु मुस्लिमों को चार बीवी, मौखिक तलाक, बिना किसी सम्पत्ति व् गुजारा भत्ते के और नाबालिग लड़कियों से शादी का अधिकार दिया गया, हिंदुओं ने इसका मुखर होकर विरोध नहीं किया,
हिंदुओं की धार्मिक यात्राओं पर टैक्स लगा दिया गया और मुसलमानों को उनकी हज यात्रा पर सरकारें हिंदुओं के टैक्स के पैसों से भेजती रहीं, हिन्दू चुपचाप देखता रहा
हिंदुओं के मंदिरों और मंदिरों की संपत्तियों पर सरकार ने बोर्ड बनवाकर कब्जा कर लिया किन्तु ईसाईयों के चर्च और इस्लामिक मस्जिदों व् दरगाहों पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं लागू की गयी, उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता दी गयी,
हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं को स्कूल गुरुकुल खोलने चलाने और धार्मिक शिक्षा देने से प्रतिबंधित कर दिया गया, किन्तु चर्च और इस्लामिक संगठनों को मदरसों में धार्मिक शिक्षा देने पर कोई रोक नहीं लगाई गई,
जब कम्युनल वायलेंस बिल आया जो किसी भी दंगे या हिंसा में हिंदुओं को छोड़कर सभी धर्म के लोगों को निरपराध घोषित करता था, उसका भी अधिकांश हिंदुओं ने विरोध नहीं किया था, व् अंधश्रद्धा बिल जो हिंदुओं के धार्मिक अनुष्ठानों को ही प्रतिबंधित करने जा रहा था उसका भी हिंदुओं ने विरोध नहीं किया था,
हिंदुओं के एक छोटे से वर्ग को छोड़कर किसी ने इन निर्णयों व् सौतेले व्यवहार का विरोध नहीं किया, और जिन्होंने विरोध किया उन्हें गोडसे-सावरकर का अनुयायी घोषित करने की मुहिम चला दी गयी, दुर्भाग्य ये है कि हिंदुओं पर, उनकी आस्था पर, उनके समाज पर और अब हिंदुओं के अस्तित्व पर निरंतर आक्रमण हो रहे हैं, और हिन्दू है कि शुतुरमुर्ग के समान अपना सर जमीन में घुसाये बैठा है, ये सोचकर की ये सेक्युलर देश है, सरकार और कोर्ट उसकी रक्षा करेंगे, किन्तु वो भूल चुका है जो स्वयं अपनी सहायता नहीं करता कोई उसकी सहायता को आगे नहीं आता।